दरबदर भटकती की एक नजर को , मंजिल-ऐ-कशिश का सहारा मिला । दरबदर भटकती की एक नजर को , मंजिल-ऐ-कशिश का सहारा मिला ।
उठ जा तू भी अपने सेज से लेकर फूलों का हार अभी। उठ जा तू भी अपने सेज से लेकर फूलों का हार अभी।
सुरभित हैं दिग दिगन्त आ गया बसंत सुरभित हैं दिग दिगन्त आ गया बसंत
मेरे सपने मुझे सताते हैं , सारी-सारी रात जगाते हैं । मेरे सपने मुझे सताते हैं , सारी-सारी रात जगाते हैं ।
मगर जीवन मिला नहीं बस मिट जाने को। हैं ये उपवन कुछ सौरभ बिखराने को। मगर जीवन मिला नहीं बस मिट जाने को। हैं ये उपवन कुछ सौरभ बिखराने को।
हर कोई इस तरह रम गया है , मानो उसे भी ना पता कि वो कौन है। हर कोई इस तरह रम गया है , मानो उसे भी ना पता कि वो कौन है।